cherchera kyu manaya jata hai ? जानिये इसके  पीछे की कहानी 

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आगे इस ब्लॉग पर आप जानेंगे की cherchera kyu manaya jata hai इसको मनाने के कौन कौन से कारण  हैं ? छेरछेरा कब मनाया जाता है यह किस तरह मनाया जाता है तथा छेरछेरा कब है 2022 में  साथ ही हम इससे जुड़े पुरानी प्रचलित मान्यता जिसके कारण यह परंपरा चलती आ रही है - के बारे में विस्तार से जानेंगे 


पौष माघ की पुन्नी (पूर्णिमा) तिथि को मनाया जाने वाला त्यौहार छेरछेरा छत्तीसगढ़ में बहुत महत्व रखता है छेरछेरा को छत्तीसगढ़ में महत्ता के त्योहार के रूप में मनाने की परम्परा है जो छेरछेरा के नाम से जाना जाता है इस दिन लोगों  के द्वारा दान-पूण किया जाता है इस दिन घर आए  मेहमान को खाली हाथ जाने नहीं देते हैं ऐसी मान्यता है की दान करने से दान करने वाले के घर में कभी अनाज कभी काम नहीं होता है  

cherchera kab hai 2022 / 2022 me cherchera kab hai 

cherchera festival date छेरछेरा 2022 में  28 जनवरी को है।  छेरछेरा हर साल पौष माह की पुन्नी तिथि अर्थात, पूर्णिमा को मनाया जाता है ये समय सबसे उचित होता है  इस समय खरीफ की नयी फसल को खेतों से घरों में लाने का काम पूरा हो जाता है, सभी घरों के भण्डार एक बार फिर भर जाते हैं। और सभी के पास दान करने के लिए पर्याप्त मात्रा में अनाज होता है। 

cherchera kyu manaya jata hai ?-छेरछेरा क्यों  मनाया जाता है ?


 दो सबसे अधिक प्रचलित मान्यता 

1.राजा कल्याण साय 

कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय मुगल सम्राट जहांगीर के सल्तनत में रहकर राजनीती और युद्धकला की शिक्षा ली शिक्षा लेने के लिए वे अपने घर से आठ वर्षों तक दूर रहे आठ वर्षों की शिक्षा के बाद  जब राजा कल्याण साय  रतनपुर आये जब प्रजा को यह खबर मिली तो वे बहुत हर्षोल्लास और ख़ुशी में ढोल नगाड़े, गाजे- बाजों के साथ नाचते गाते राजा से भेंट करने आ पहुँचे इसके साथ दूसरे प्रदेश के राजा भी उनसे मिलने के लिए आने लगे पुरे प्रदेश में खुशी  का माहौल बन गया । 

पूरी प्रजा ख़ुशी के मारे नाचने गाने लगी ढोल नगाड़ों की आवाज से राजा का स्वागत करने लगे हर किसी के चेहरे पर ख़ुशी छाई  थी चारों तरफ खुशियों की बारिश हो रही थी रानी फुलकैना भी राजा कल्याण साय से 8 साल दूर रहकर उनकी अनुपस्तिथि में  सम्पूर्ण राजपाठ संभाला था।  काफी समय के बाद वे अपने पति से मिलकर बहुत खुश  थीं प्रजा के  इतने उत्साह और और खुशी को देखकर अपने गहनों और सोने-चांदी के सिक्के बाँटना प्रारम्भ कर दिया  इस दिन राजा कल्याण साय  तथा रानी फुलकैना ने सभी उपस्थित राजाओं और प्रजा के सामने यह घोषणा की। 

कि इस दिन को हमेशा त्योहार  के रूप में मनाया जायेगा इस दिन हर कोई अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ दान करेगा , कोई भी किसी के घर से खाली हाथ वापस नहीं लौटेगा इसी कारण छेरछेरा मनाया जाता है । 


2. देवी शाकंभरी 

कहा जाता है धरती पर घनघोर अकाल पड़ा, उस वक्त किसी भी प्रकार किसी भी प्रकार का फल फूल, अन्न, कुछ भी नहीं उगाया जा सका मनुष्य के साथ जंगली जानवर के लिए के लिए अब जिन्दा रहना असंभव हो गया , चारों  तरफ त्राहि-त्राहि मची थी  ऋषि मुनि व आमजन भूख से थर्रा गए । 

तब सभी ने आदि शक्ति देवी शाकंभरी पुकार की  शाकंभरी देवी प्रकट हुईं और उन्होंने अन्न, फल, फूल, दाना -पानी से भरा पूरा भण्डार दे दिया।  तब मनुष्य को एक नया जीवन मिला तभी से इसी दिन की याद में छेरछेरा मनाने की बाद कही जाती है।   


छेरछेरा पर्व किस तरह मनाया जाता है ?  


इस दिन बच्चे टोलियाँ बनाकर घर-घर जाते हैं और कहते हैं....

छेरिक-छेरा छेर-मरकनीन छेर-छेरा, माई कोठी के धान ला हेर-हेरा 

 ऐसा कहकर मरकनीन  देवी को विनती की जाती है की माई तेरे आँगन में हम आये हैं कोठी से अनाज निकलकर हमारी दुःख दरिद्रता को दूर कीजिये।  इसी मान्यता के कारण माई के द्वारा कोदो, कुटकी, धान- चावल,फल फूल दान करके मेहमान को विदा किया जाता है इस दिन किसी को भी खाली हाथ लौटने नहीं दिया जाता है। वो अपनी तरफ से अन्न- धन जरूर दान करते हैं   


यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र एक ऐसा त्यौहार हैं जिस दिन आमिर गरीब का फर्क कोई नहीं देखता, हर कोई आपने सामर्थ्य के मुताबिक दान करते हैं।  पौष पुन्नी दिन मनाया जाने वाला त्यौहार छेरछेरा को छत्तीगढ़ में दानकुन का त्यौहार माना जाता है । 

इस दिन घरों में तरह - तरह के पकवान बनाए जाते हैं आपस में बाँटते हैं और इस त्यौहार का आनंद लेते हैं, बच्चे इस दिन रात के समय ढोल मंजीरे के साथ लोकगीत गाते हैं और नृत्य भी करते हैं स्थानीय भाषा में इन लोकगीतों को "लोकड़ी गीत" भी कहते हैं  बच्चे घर घर जाते हैं और दरवाजे पर खड़े हो कर कहते हैं........

"छेरछेरा माईकोठी के धान ला हेर-हेरा" 

और घर के सदस्य द्वारा मुट्ठी भर अनाज उनकी झोली में दाल दिया जाता है और  जब तक उन्हें दान नहीं मिल जाता तब तक वे दरवाजे से नहीं हटते और बार-बार कहते हैं.......

 "अरन बरन कोदो दरन  जबे देबे तबे टरन" 

छत्तीसगढ़ में "छेरछेरा पुन्नी" के दिन अपने साल भर की कमाई अनाज  उपजाने की ख़ुशी में कुल ऊपज के थोड़े से हिस्से को कुल के रूप में दान किया जाता है। मांगने की परम्परा ही छेरछेरा है यहाँ पर मांगने वाले को ब्राह्मण का रूप और देने वाले को शांकभरी देवी का रूप मन जाता है 


  निष्कर्ष /conclusion  

मुझे पता है की अगर आप छत्तीसगढ़ के मूल निवाशी  हैं तब आपको cherchera kyu manaya jata hai ये पता होना चाहिए तो आपको भी ये बातें पता ही  होंगी। आप अपने घर के बड़े बुजुर्गों से भी पूछ सकते हैं की छेरछेरा क्यों मनाया जाता है  हो सकता है उनसे आपको कोई और भी बात जानने को मिल जाए बताएँ छेरछेरा के बारे में आप क्या जानते हैं जरूर बातएँ  नीचे कमेंट सेक्शन में। धन्यवाद।